Shri Ram Stuti (श्रीराम स्तुति)
Shri Ram Stuti “श्री राम स्तुति” या Shri Ramachandra Kripalu ‘श्री रामचंद्र कृपालु’ एक स्तुति (गौरव गान) है, जो गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित विनय पत्रिका से ली गई है। इसे 16वीं शताब्दी में लिखा गया था और इसमें संस्कृत और अवधी भाषाओं का अद्वितीय मिश्रण देखने को मिलता है। इस स्तुति में भगवान श्रीराम के दिव्य गुणों और उनके व्यक्तित्व की महिमा का अद्भुत वर्णन किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने इस स्तुति के माध्यम से श्रीराम के करुणामय स्वभाव, उनके शौर्य, और मर्यादाओं की प्रशंसा करते हुए उन्हें लोक कल्याणकारी और आदर्श पुरुष के रूप में चित्रित किया है।
श्री राम स्तुति केवल एक धार्मिक भजन नहीं है, बल्कि यह भक्ति और श्रद्धा का वह सजीव स्रोत है, जो व्यक्ति के मन में भगवान श्रीराम के प्रति असीम भक्ति और विश्वास को उत्पन्न करता है। इस स्तुति में श्रीराम के प्रेम, शांति, और करुणा का वर्णन इतनी भव्यता से किया गया है कि यह हर श्रोता के मन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करती है।
16वीं शताब्दी में तुलसीदास द्वारा रचित यह स्तुति उस समय के धार्मिक और सामाजिक परिवेश को भी प्रतिबिंबित करती है, जहाँ रामराज्य और राम के आदर्शों की प्रासंगिकता अधिक गहराई से अनुभव की जाती थी। अवधी और संस्कृत का सम्मिश्रण इस रचना को और भी प्रभावी बनाता है, क्योंकि ये भाषाएँ तब जनमानस की भाषा थीं। इस स्तुति के शब्दों में छिपी गहराई न केवल भगवान राम की महिमा का वर्णन करती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि किस प्रकार उनकी कृपा से व्यक्ति अपने जीवन के समस्त दुखों और कष्टों से मुक्त हो सकता है।
श्री राम स्तुति जैसी स्तुतियाँ आज भी भारतीय समाज और धर्मिक परंपराओं में गहरा प्रभाव रखती हैं, क्योंकि इनकी सरलता और गहनता भक्तों के हृदय को सीधा स्पर्श करती है।
Shri Ram Stuti | Shri Ramachandra Kripalu इस प्रकार से है:
दोहा
श्रीरामचंद्र कृपालु भज मन, हरण भवभय दारुणं ।
नवकंज-लोचन कंज-मुख कर, कंज पद कंजारुणं।। १।।
कन्दर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरज सुंदरम।
पटपीत मानहुँ तड़ित रूचि शुचि, नौमी जनक सुताबरं।। २।।
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव, दैत्य बंश-निकन्दनं।
रघुनन्द आनन्द कन्द कौशल, चन्द दशरथ-नन्दनं।। ३।।
शिर मुकुट कुंडल तिलक, चारु उदारु अंग बिभूषणं।
आजानु भुज शर-चाप-धर, संग्राम जित खरदूषणं।।४।।
इति वदति तुलसी दास शंकर, शेष-मुनि-मन रंजनं।
मम ह्रदय-कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल गंजनं।।५।।
मनु जाहिं राचेहु मिलिहि सो बरु, सहज सुन्दर साँवरो।
करुणा निधान सुजान शीलू, सनेह जानत रावरो।। ६।।
एहि भांति गौरी असीस सुनी सिय, सहित हियँ हरषी अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि-पुनि, मुदित मन मन्दिर चली।। ७।।
सोरठा
जानि गौरी अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल, वाम अंग फरकन लगे।।
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Shri Ram Stuti का अर्थ इस प्रकार हैं:
- हे मन, दयालु श्रीरामचंद्रजी का भजन करो। वे संसार के जन्म-मरण के भयंकर चक्र को दूर करने वाले हैं। उनके नेत्र ऐसे सुंदर हैं, जैसे अभी-अभी खिले हुए कमल। उनका मुख, हाथ और पैर भी लालकमल की तरह सुंदर और कोमल हैं।
- श्रीराम का सौंदर्य अनगिनत कामदेवों से भी अधिक मोहक है। उनका शरीर ताजे नील-सजल बादल की तरह चमकदार है। पीले वस्त्र उनके बादलों जैसे शरीर पर बिजली की तरह चमक रहे हैं। ऐसे पवित्र रूप वाले जानकीपति श्रीराम को मैं प्रणाम करता हूँ।
- हे मन, जो दीनों के साथी, सूर्य जैसे तेजस्वी, और दानवों का नाश करने वाले हैं, उन दशरथनंदन श्रीराम का भजन करो। वे आनंद के स्रोत हैं और कोशलरूपी आकाश में निर्मल चंद्रमा की तरह चमकते हैं।
- उनके सिर पर रत्नजड़ित मुकुट है, कानों में सुंदर कुण्डल हैं, और माथे पर तिलक है। उनके हर अंग में अद्भुत आभूषण सज रहे हैं। उनकी भुजाएँ घुटनों तक लंबी हैं और उन्होंने धनुष-बाण धारण कर रखा है। उन्होंने युद्ध में खर और दूषण को पराजित किया है।
- वे श्रीराम, जिनका दर्शन शिव, शेष और मुनियों को प्रसन्न करता है और जो काम, क्रोध, लोभ आदि शत्रुओं का नाश करने वाले हैं, तुलसीदास जी प्रार्थना करते हैं कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे हृदय में सदा निवास करें।
- जिस वर (श्रीराम) पर तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वह स्वभाव से सुंदर और सांवला है। वह दया का खजाना है और तुम्हारे स्नेह और शील को अच्छी तरह से समझता है।
- श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी और उनकी सभी सखियाँ हर्षित हो उठीं। तुलसीदास जी कहते हैं, भवानी जी की बार-बार पूजा कर, सीता जी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट आईं।
- सोरठा
गौरीजी के अनुकूल होने का आशीर्वाद पाकर सीता जी के हृदय में जो खुशी हुई, उसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता। उनके बाएँ अंगों का फड़कना मंगलसूचक था।