Hanuman Chalisa: हनुमान चालीसा एक अत्यंत प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक पाठ है जो भगवान हनुमान के गुणों और शक्तियों का बखान करता है। इसे तुलसीदास जी ने लिखा था और यह 40 श्लोकों (चालीस कविताओं) का संकलन है। हनुमान चालीसा का पाठ विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को किया जाता है और इसे संकट मोचन और सुरक्षा के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।
Hanuman Chalisa हनुमान चालीसा के प्रमुख विवरण:
1. लेखक: हनुमान चालीसा की रचना संत तुलसीदास जी ने की थी, जिन्होंने इसे हिंदी भाषा में लिखा। तुलसीदास जी एक महान कवि और संत थे, जिन्होंने रामचरितमानस जैसे ग्रंथों की रचना की।
2. संरचना: हनुमान चालीसा में 40 श्लोक होते हैं, जिनमें भगवान हनुमान की शक्ति, भक्ति, और उनके चमत्कारों का वर्णन किया गया है। इसके साथ ही, इसमें भगवान राम के प्रति हनुमान की निष्ठा और प्रेम भी व्यक्त किया गया है।
3. मुख्य विषय: हनुमान चालीसा में भगवान हनुमान की शक्ति, उनके दिव्य गुण, उनकी वीरता, और उनके भक्तों पर उनकी कृपा की बात की गई है। इसे एक प्रकार से भगवान हनुमान की स्तुति और पूजा के रूप में देखा जाता है।
4. प्रस्तावना: हनुमान चालीसा की शुरुआत दो श्लोकों से होती है, जिनमें लेखक ने भगवान हनुमान की महिमा का गुणगान किया है और उनकी कृपा प्राप्त करने की प्रार्थना की है।
5. प्रार्थना और स्तुति: श्लोकों में भगवान हनुमान के विभिन्न गुणों, उनकी शक्ति और उनके द्वारा किए गए चमत्कारों का वर्णन है। इसे पढ़ते समय भक्त भगवान हनुमान की कृपा और शक्ति की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
6. उपयोग और महत्व: हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करने से मानसिक शांति, आत्मबल, और संकटों से छुटकारा मिलने की उम्मीद की जाती है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी माना जाता है जो मानसिक और शारीरिक समस्याओं से जूझ रहे हैं।
7. भक्ति और श्रद्धा: हनुमान चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को भगवान हनुमान की भक्ति और उनके प्रति निष्ठा की अनुभूति होती है। यह पाठ भक्तों को संघर्षों का सामना करने की शक्ति और साहस प्रदान करता है।
हनुमान चालीसा की सुंदरता और प्रभावशालीता ने इसे भारतीय धार्मिक परंपरा में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है। इसका पाठ व्यक्ति को आध्यात्मिक उत्थान और जीवन की समस्याओं से निपटने में सहायता करता है।
Hanuman Chalisa श्री हनुमान चालीसा
दोहा :
श्रीगुरु चरन सरोज रज,निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। कांधे मूंज जनेऊ साजै।
शंकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।